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सोमवार, 15 मार्च 2010

रेडियो वाली दादी

अकेलेपन में रेडियो का सहारा
शौक किसी भी चीज का हो सकता है और शौक के लिए उम्र की भी कोई सीमा नहीं होती। जिले की नोहर तहसील के परलीका गांव निवासी दाखां देवी ने भी इसी बात को साबित कर दिखाया है। करीब चालीस साल से प्रतिदिन 18 घण्‍टे रेडियो सुनने वाली दाखां देवी गांववालों के लिए रेडियो वाली दादी के नाम से मशहूर हो चुकी है
ये है परलीका निवासी दाखां देवी। चालीस वर्ष पूर्व पति की मौत के बाद अकेलेपन को दूर करने के लिए दाखां देवी ने रेडियो का सहारा लिया। महज समय गुजरने के लिए हाथ में लिया गया रेडियो कब दाखां देवी के लिए सबकुछ बन गया इसका पता तो दाखां देवी को स्‍वयं को भी नहीं परंतु आज यही रेडियों दाखां देवी के लिए जुनून बना हुआ है। प्रतिदिन प्रात: 5 बजे उठकर रेडिया लगाना और दिनभर खाना बनाने से लेकर सभी काम करते समय रेडियो सुनना उसकी आदत में शुमार है।
निरक्षर दाखां देवी को सभी रेडियो स्‍टेशन के नाम याद हैं तो उनके कार्यक्रम भी उसको मुख जबानी याद है। दाखां देवी के इसी शोक के कारण जहां गांव वाले उसे रेडियो वाली दादी के नाम से पुकारते हैं तो ग्रामीणों के लिए दाखां देवी का शोक अनोखा भी है। ग्रामवासियों का कहना है कि पिछले 40 सालों से वे प्रतिदिन दाखां देवी के हाथ में रेडियो ही देखते आ रहे हैं।
आज टीवी और एफएम रेडियो के युग में भी टीवी की बजाय रेडियो को तवज्‍जो दे रही दाखां देवी गांववासियों के लिए किसी अजूबे से कम नहीं है। अपने किसी के चले जाने के बाद अकेलेपन को भूलाने के लिए दाखां देखी द्वारा लिये गये रेडिये के सहारे को चाहे शौक बोलें, चाहे जुनून या फिर पागलपन। पर दाखां देवी ने यह तो साबित कर ही दिया कि अकेलेपन को दूर करने के कई सहारे होते हैं जिनमें रेडियो भी एक है और आज भी रेडियो का जमाना गया नहीं है।
गुलाम नबी की रिपोर्ट

1 टिप्पणी:

  1. is lekh ko padhkar bahoot hi achaa lagaa aaj bhi log radio sunana nahi chodhe hai ye ek aisa madhyam hai jisse her prakar ke gaane news chutkule vibhinn prakaar ke manoranjan hota hai.

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