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शनिवार, 13 मार्च 2010

कुदरत की नाइंसाफी

हनुमानगढ़ जिले के भादरा कस्बे की धापा पढ़ना चाहती है लेकिन उसकी यह तम्मना पूरी नही हो पायेगी 16 वर्ष की धापा इस दुनिया में थोडे ही दिनों की मेहमान और है थोड़े ही दिन बाद वह मर जायेगी धापा के साथ कुदरत ने खेल ही कुछ ऐसा खेला है आईये आपको भी मिलवाते हैं इस बदनसीब मासूम सेा

धापा अब 16 साल की हो चुकी है जब यह पैदा हुई थी तब तीन साल तक यह बिल्कुल सामान्य रही तीन साल बाद इसने चारपाई पकड़ी तो आज तक उसे छोड़ नही पाई धापा को न जाने कौनसी बीमारी लगी कि उम्र के साथ साथ चेहरा तो विकसित हो गया लेकिन शरीर विकसित नही हो पाया शरीर से वह आज भी बच्ची ही लगती है धापा अब सिर्फ़ बोल सकती है उसके शरीर के सभी अंग शून्य है अपनी बीमारी के बारे में धापा भी परिचित है वह पढ़ कर डॉक्टर बनना चाहती है1
बेचारी धापा ये नही जानती कि वह जो सपना देख रही है वो पुरा नही होगा धापा के परिवार वाले खेत मजदूरी कर जैसे तैसे अपना निर्वाह कर रहे हैं इसके बावजूद अपनी हैसियत के अनुसार उन्होंने धापा को जहाँ दिखाना था दिखाया लेकिन बात नही बनी न डॉक्टर ने सूनी और न ही प्रशासन ने शायद इस परिवार की मुफ्लिशी इसकी वजह रही हो
धापा की इस बीमारी को डॉक्टर लाइलाज बताते हैं डॉक्टरों का कहना है कि ऐसे मरीजों कि उम्र कम होती है
गरीबी ने इस परिवार को आर्थिक रूप से पुरी तरह तोड़ रखा है बेटी चारपाई पर पड़ी है वह न हिल डूल सकती है और न ही बड़ी हो रही है थोड़े दिन बाद वह सदा सदा के लिए रुखसत हो जायेगी लेकिन उसे बचने के प्रयास कोई भी नही कर रहा पड़ोसी अपील कर रहे हैं कि कोई मदद मिले तो भले ही वह ठीक न हो लेकिन उसकी जिन्दगी के दिन कुछ दिन और बढ़ सकते हैं
कुदरत भी क्या क्या खेल खिलाती है जो जीना चाहता है समाज के लिए कुछ करना चाहता है उसे लाचार बनाकर चारपाई पर डाल दिया और जिन्हें मौत मिलनी चाहिए वे आंतक के रूप में मौत का सरेआम तांडव कर जश्न मना रहे हैं शायद धापा कुदरत के इस क्रूर खेल में हर जाए लेकिन यह हर धापा कि नही विज्ञानं कि होगी हमारे समाज कि होगी और हमारे प्रशासन कि होगी इस मासूम कि जान बचने के प्रयास सिर्फ़ उसके परिवार कि मुफलिसी वजह से नही किए

संवाद संकलन
गुलामनबी

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