राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले और पाकिस्तान की सीमा पर स्थित लैला मजनू की मजार पर अब जिला प्रशासन की नई पहल के बाद उम्मीद जगी है। करीब सौ साल पुरानी इस ऐतिहासिक मजार पर दुखी लोग मन्नतें मांगते हैं और उनकी मन्नतें पूरी भी होती हैं परंतु इस मजार की व्यवस्था सुधारने के लिए मांगी गई मन्नतों का इतने वर्षों तक जिला प्रशासन पर कोई असर नहीं हुआ और अब जिला पर्यटन विकास समिति ने इसके लिए पहल की है।
संवाद सेतु
समाज के लिए संवाद का सेतु बनने का प्रयास है मेरा | समाचार एवं संवाद संकलित कर सबके समक्ष लाना मेरा हेतु है I कोई भी आपस में रार -तकरार न करें | आपस में संवाद करें, सूचनाएं प्राप्त करे, सूचनाएं प्रसारित करें | इसी से बड़ी से बड़ी समस्या का हल हो सकता है | मेरे साथ आइये, संवाद सेतु बनिए! शायद हम मिलकर इस त्रस्त समाज को सुख के कुछ क्षण दे सकें | गुलाम नबी संवाददाता +919414095786
गुरुवार, 18 मार्च 2010
सोमवार, 15 मार्च 2010
रेडियो वाली दादी
अकेलेपन में रेडियो का सहारा
शौक किसी भी चीज का हो सकता है और शौक के लिए उम्र की भी कोई सीमा नहीं होती। जिले की नोहर तहसील के परलीका गांव निवासी दाखां देवी ने भी इसी बात को साबित कर दिखाया है। करीब चालीस साल से प्रतिदिन 18 घण्टे रेडियो सुनने वाली दाखां देवी गांववालों के लिए रेडियो वाली दादी के नाम से मशहूर हो चुकी है
ये है परलीका निवासी दाखां देवी। चालीस वर्ष पूर्व पति की मौत के बाद अकेलेपन को दूर करने के लिए दाखां देवी ने रेडियो का सहारा लिया। महज समय गुजरने के लिए हाथ में लिया गया रेडियो कब दाखां देवी के लिए सबकुछ बन गया इसका पता तो दाखां देवी को स्वयं को भी नहीं परंतु आज यही रेडियों दाखां देवी के लिए जुनून बना हुआ है। प्रतिदिन प्रात: 5 बजे उठकर रेडिया लगाना और दिनभर खाना बनाने से लेकर सभी काम करते समय रेडियो सुनना उसकी आदत में शुमार है।
निरक्षर दाखां देवी को सभी रेडियो स्टेशन के नाम याद हैं तो उनके कार्यक्रम भी उसको मुख जबानी याद है। दाखां देवी के इसी शोक के कारण जहां गांव वाले उसे रेडियो वाली दादी के नाम से पुकारते हैं तो ग्रामीणों के लिए दाखां देवी का शोक अनोखा भी है। ग्रामवासियों का कहना है कि पिछले 40 सालों से वे प्रतिदिन दाखां देवी के हाथ में रेडियो ही देखते आ रहे हैं।
आज टीवी और एफएम रेडियो के युग में भी टीवी की बजाय रेडियो को तवज्जो दे रही दाखां देवी गांववासियों के लिए किसी अजूबे से कम नहीं है। अपने किसी के चले जाने के बाद अकेलेपन को भूलाने के लिए दाखां देखी द्वारा लिये गये रेडिये के सहारे को चाहे शौक बोलें, चाहे जुनून या फिर पागलपन। पर दाखां देवी ने यह तो साबित कर ही दिया कि अकेलेपन को दूर करने के कई सहारे होते हैं जिनमें रेडियो भी एक है और आज भी रेडियो का जमाना गया नहीं है।
गुलाम नबी की रिपोर्ट
शौक किसी भी चीज का हो सकता है और शौक के लिए उम्र की भी कोई सीमा नहीं होती। जिले की नोहर तहसील के परलीका गांव निवासी दाखां देवी ने भी इसी बात को साबित कर दिखाया है। करीब चालीस साल से प्रतिदिन 18 घण्टे रेडियो सुनने वाली दाखां देवी गांववालों के लिए रेडियो वाली दादी के नाम से मशहूर हो चुकी है
ये है परलीका निवासी दाखां देवी। चालीस वर्ष पूर्व पति की मौत के बाद अकेलेपन को दूर करने के लिए दाखां देवी ने रेडियो का सहारा लिया। महज समय गुजरने के लिए हाथ में लिया गया रेडियो कब दाखां देवी के लिए सबकुछ बन गया इसका पता तो दाखां देवी को स्वयं को भी नहीं परंतु आज यही रेडियों दाखां देवी के लिए जुनून बना हुआ है। प्रतिदिन प्रात: 5 बजे उठकर रेडिया लगाना और दिनभर खाना बनाने से लेकर सभी काम करते समय रेडियो सुनना उसकी आदत में शुमार है।
निरक्षर दाखां देवी को सभी रेडियो स्टेशन के नाम याद हैं तो उनके कार्यक्रम भी उसको मुख जबानी याद है। दाखां देवी के इसी शोक के कारण जहां गांव वाले उसे रेडियो वाली दादी के नाम से पुकारते हैं तो ग्रामीणों के लिए दाखां देवी का शोक अनोखा भी है। ग्रामवासियों का कहना है कि पिछले 40 सालों से वे प्रतिदिन दाखां देवी के हाथ में रेडियो ही देखते आ रहे हैं।
आज टीवी और एफएम रेडियो के युग में भी टीवी की बजाय रेडियो को तवज्जो दे रही दाखां देवी गांववासियों के लिए किसी अजूबे से कम नहीं है। अपने किसी के चले जाने के बाद अकेलेपन को भूलाने के लिए दाखां देखी द्वारा लिये गये रेडिये के सहारे को चाहे शौक बोलें, चाहे जुनून या फिर पागलपन। पर दाखां देवी ने यह तो साबित कर ही दिया कि अकेलेपन को दूर करने के कई सहारे होते हैं जिनमें रेडियो भी एक है और आज भी रेडियो का जमाना गया नहीं है।
गुलाम नबी की रिपोर्ट
रविवार, 14 मार्च 2010
राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए विद्यार्थी आगे आये
एक और जहाँ समूचे राजस्थान में राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए राजस्थानी आन्दोलनरत है वहीं अब स्कूली बच्चों ने भी आन्दोलन के इस यज्ञ में आहुति दे दी है! इसका उदाहरण है नोहर में परलिका गाँव की पूनम--! पूनम को यकीं है की एक दिन उसका ये प्रयास रंग लायेगा!
मायाड भाषा की मान्यता के लिए अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति के प्रयास काफी जोर शोर से चल रहे है! इन्ही प्रयासों से प्रेरणा लेकर नोहर में परलिका गाँव की पूनम ने भी मायाड भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने की अलख जगा दी है! पूनम परलिका गाँव के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय की कक्षा 12 की छात्रा है! पढ़ाई के साथ साथ वह न केवल राजस्थानी साहित्य को कंठस्थ करने में लगी है वल्कि कई राजस्थानी कवियों की रचनाएँ उसे कंठस्थ भी है! पूनम का मानना है की वह हर एक स्कूली बच्चे के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनकर राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए चल रहे संघर्ष में सहयोग का आह्वान करेगी!
पूनम के इन प्रयाशों से उसके अभिभावक ही नही शिक्षक और यहाँ तक की राजस्थानी साहित्य की धरोहर समझे जाने वाला समूचा परलिका गाँव भी अभिभूत है! पूनम के इन प्रयासों में साहित्यकार और शिक्षक हर कोई पुरा सहयोग कर रहे है! सभी का मानना है की राजस्थानी भाषा की मान्यता में अखिल राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति के प्रयासों के साथ साथ उच्च माध्यमिक स्कुल की इस छात्रा की मेहनत भी रंग लाएगी!
संविधान में क्षेत्रीय भाषाओँ के लिए बने आठवें अनुछेद में राजस्थानी भाषा को शामिल कर उसे मायाड भाषा का दर्जा दिलाने के लिए अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति पिछले लंबे अरसे से प्रयासरत है! समिति के ये प्रयास अब मान्यता के करीब पहुँच चुके है ऐसे में पूनम और इससे प्रेरणा लेकर भाषा की मान्यता का अलख जगाने वाले स्कूली बच्चों के प्रयास रंग लायेंगे इसमे कोइसंदेह नहीं राजस्थानी भाषा के liye गाँव के विद्यार्थियों ने राजनीती से jude लोगो को भी चेता दिया है की आपको वोट भी तभी मिलेंगे जब पहेले राजस्थानी भाषा को मान्यता मिलेगी गुलाम नबी!
मायाड भाषा की मान्यता के लिए अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति के प्रयास काफी जोर शोर से चल रहे है! इन्ही प्रयासों से प्रेरणा लेकर नोहर में परलिका गाँव की पूनम ने भी मायाड भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने की अलख जगा दी है! पूनम परलिका गाँव के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय की कक्षा 12 की छात्रा है! पढ़ाई के साथ साथ वह न केवल राजस्थानी साहित्य को कंठस्थ करने में लगी है वल्कि कई राजस्थानी कवियों की रचनाएँ उसे कंठस्थ भी है! पूनम का मानना है की वह हर एक स्कूली बच्चे के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनकर राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए चल रहे संघर्ष में सहयोग का आह्वान करेगी!
पूनम के इन प्रयाशों से उसके अभिभावक ही नही शिक्षक और यहाँ तक की राजस्थानी साहित्य की धरोहर समझे जाने वाला समूचा परलिका गाँव भी अभिभूत है! पूनम के इन प्रयासों में साहित्यकार और शिक्षक हर कोई पुरा सहयोग कर रहे है! सभी का मानना है की राजस्थानी भाषा की मान्यता में अखिल राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति के प्रयासों के साथ साथ उच्च माध्यमिक स्कुल की इस छात्रा की मेहनत भी रंग लाएगी!
संविधान में क्षेत्रीय भाषाओँ के लिए बने आठवें अनुछेद में राजस्थानी भाषा को शामिल कर उसे मायाड भाषा का दर्जा दिलाने के लिए अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति पिछले लंबे अरसे से प्रयासरत है! समिति के ये प्रयास अब मान्यता के करीब पहुँच चुके है ऐसे में पूनम और इससे प्रेरणा लेकर भाषा की मान्यता का अलख जगाने वाले स्कूली बच्चों के प्रयास रंग लायेंगे इसमे कोइसंदेह नहीं राजस्थानी भाषा के liye गाँव के विद्यार्थियों ने राजनीती से jude लोगो को भी चेता दिया है की आपको वोट भी तभी मिलेंगे जब पहेले राजस्थानी भाषा को मान्यता मिलेगी गुलाम नबी!
लाख-लाख रुपए के बकरे
आमजन के लिए आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं शौकत अली के बकरे
कुदरत के रंग भी निराले होते हैं और कई बार कुदरत ऐसे-ऐसे कारनामे करती है कि देख्ाने वाला हैरान रह जाता है। हनुमानगढ जिले के गांव रोडांवाली निवासी शौकत अली के घर पर बंधे बकरे भी ऐसी ही हैरानगी पैदा करने वाला विषय बने हुए हैं।
मुसलमान समुदाय के प्रसिद़ध त्यौहार बकरीद के नजदीक आते ही बकरीद के दिन कुर्बानी देने के लिए बकरों की खरीद फरोख्त का सिलसिला प्रारंभ हो गया है रोडांवाली गांव निवासी शौकत अली के घर पहुंच रहे खरीददारों को यहां पर एक नया तौहफा मिल रहा है और वो है गाय के आकार के विशालकाय बकरे। आम बकरों से कहीं ज्यादा बडे ये बकरे सभी के लिए कोतूहल का केन्द्र बने हुए हैं। इनमें से कई बकरों की लम्बाई तो साढे पांच फुट तक है और मोटाई की बात करें तो इनमें से कई बकरे 150 किलो से भी ज्यादा के हैं। ग्राहकों का मानना है कि इनमें से प्रत्येक बकरे से एक क्विंटल गौश्त प्राप्त हो सकता है।
शौकत अली के इन बकरों की कीमत प्रति बकरा सत्तर हजार तक लग चुकी है मगर शौकत अली अपनी इस अनमोल चीज को एक लाख से कम बेचने को तैयार ही नहीं है जिस कारण ग्राहक यहां से निराश लौट रहे हैं। इन बकरों को देखने के लिए जहां पंजाब, हरियाणा के अलावा राजस्थान के दूर दराज के क्षेत्रों से ग्राहक पहुंच रहे हैं तो ग्रामवासी भी इन बकरों को देखकर हैरान हैं। ग्रामीणों व यहां आने वाले ग्राहकों का मानना है कि उन्होने अपनी जिदंगी में इतने बडे-बडे बकरे नहीं देखे।
अब जबकि ये बकरे सभी के लिए आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं तो शौकत अली के लिए इन बकरों को पालना भी किसी समस्या से कम नहीं है। इनमें से प्रत्येक बकरा प्रतिदिन की खुराक में 5 किलो चने की दाल और 5 किलो दूध पी जाता है जिसके चलते शौकत अली को इनके पालन पौषण में भारी मशक्कत का सामना करना पड रहा है।
अब इसे कुदरत का करिश्मा कहें या शौकत अली की अथक मेहनत का परिणाम की ये बकरे सभी के आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं। बकरीद के त्यौहार के मद़देनजर शौकत अली के घर पहुंच रहे ग्राहक निराश लौट रहे हैं तो साथ ही वे एक नई अनुभूति भी प्राप्त कर रहे हैं।
हनुमानगढ से गुलाम नबी की विशेष रिपोर्ट।
कुदरत के रंग भी निराले होते हैं और कई बार कुदरत ऐसे-ऐसे कारनामे करती है कि देख्ाने वाला हैरान रह जाता है। हनुमानगढ जिले के गांव रोडांवाली निवासी शौकत अली के घर पर बंधे बकरे भी ऐसी ही हैरानगी पैदा करने वाला विषय बने हुए हैं।
मुसलमान समुदाय के प्रसिद़ध त्यौहार बकरीद के नजदीक आते ही बकरीद के दिन कुर्बानी देने के लिए बकरों की खरीद फरोख्त का सिलसिला प्रारंभ हो गया है रोडांवाली गांव निवासी शौकत अली के घर पहुंच रहे खरीददारों को यहां पर एक नया तौहफा मिल रहा है और वो है गाय के आकार के विशालकाय बकरे। आम बकरों से कहीं ज्यादा बडे ये बकरे सभी के लिए कोतूहल का केन्द्र बने हुए हैं। इनमें से कई बकरों की लम्बाई तो साढे पांच फुट तक है और मोटाई की बात करें तो इनमें से कई बकरे 150 किलो से भी ज्यादा के हैं। ग्राहकों का मानना है कि इनमें से प्रत्येक बकरे से एक क्विंटल गौश्त प्राप्त हो सकता है।
शौकत अली के इन बकरों की कीमत प्रति बकरा सत्तर हजार तक लग चुकी है मगर शौकत अली अपनी इस अनमोल चीज को एक लाख से कम बेचने को तैयार ही नहीं है जिस कारण ग्राहक यहां से निराश लौट रहे हैं। इन बकरों को देखने के लिए जहां पंजाब, हरियाणा के अलावा राजस्थान के दूर दराज के क्षेत्रों से ग्राहक पहुंच रहे हैं तो ग्रामवासी भी इन बकरों को देखकर हैरान हैं। ग्रामीणों व यहां आने वाले ग्राहकों का मानना है कि उन्होने अपनी जिदंगी में इतने बडे-बडे बकरे नहीं देखे।
अब जबकि ये बकरे सभी के लिए आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं तो शौकत अली के लिए इन बकरों को पालना भी किसी समस्या से कम नहीं है। इनमें से प्रत्येक बकरा प्रतिदिन की खुराक में 5 किलो चने की दाल और 5 किलो दूध पी जाता है जिसके चलते शौकत अली को इनके पालन पौषण में भारी मशक्कत का सामना करना पड रहा है।
अब इसे कुदरत का करिश्मा कहें या शौकत अली की अथक मेहनत का परिणाम की ये बकरे सभी के आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं। बकरीद के त्यौहार के मद़देनजर शौकत अली के घर पहुंच रहे ग्राहक निराश लौट रहे हैं तो साथ ही वे एक नई अनुभूति भी प्राप्त कर रहे हैं।
हनुमानगढ से गुलाम नबी की विशेष रिपोर्ट।
शराबी पुलिस वाला
हम सब पुलिस के रवैये से वाकिफ है और वर्दी के पीछे छुपे चहरे को भी अच्छी तरह जानते हैं....मैं आपको इस न्यूज़ के जरिये पुलिस का एक रूप और दिखता हूँ जो की आपने शायद ही देखा हो.....
विज्ञानं को सलाम
छोटी सी उम्र में उसने ऐसे ऐसे अविष्कार किये है जिसे देख कोई भी दांतों तले ऊँगली दबा ले....
प्रस्तुत है गुलाम नबी की रिपोर्ट.....
प्रस्तुत है गुलाम नबी की रिपोर्ट.....
हजारो साल पुरानी सभ्यता कर रही है पुकार
हजारो साल पुरानी सभ्यता अपनी दशा पे आंसू बहा रही है मगर इसके आंसू पोंछने वाला कोई नहीं है प्रस्तुत है गुलाम नबी की एक खास रिपोर्ट
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